समकालीन कला में उभरती भौतिकवादी प्रवित्ति
OVER MATERIALISTIC ATTITUDE IN CONTEMPORARY ART)
प्रकृति चेतन और जड़ की प्रमाणिक,संतुलित और सहज अभिव्यक्ति है जिसमें मानव अस्तित्व की सतत संघर्षमय प्रक्रिया से गुजर कर अपने अपने समाज से सीधा सम्बन्ध स्थापित करता है और किसी न किसी रूप में अपने अनुभवों को व्यक्त करता है । सृजन की शक्ति प्रकृति प्रदत्त है क्योंकि किसी भी सृजनकर्ता के लिए आज भी ये रहस्य है कि उसके बौद्धिक और आत्मिक विकास की प्रक्रिया में प्रकृति अपना योगदान और भूमिका क्यूँ और कैसे अदा करती है ! अनुभूति एक तरंग की तरह अचेतन के गर्भ में कहीं न कहीं अपना प्रभाव संचयित कर अर्धचेतन में प्रसारित होती है और यथार्थ की अनुभवों को कलाकार की व्यक्तिगत प्रतिमा रूप में परिवर्तित कर व्यक्त होने का मार्ग खोजती है; अंतर मन में विकसित अव्यक्त प्रतिमा अपने नए रूप को व्यक्त करने के लिए जिन सोपानों और अवरोधों से गुजरती है उसी को सृजन प्रक्रिया कह सकते हैं । मानसिक प्रतिमाओं कलात्मक रूप पाने के लिए आत्मिक और बौद्धिक द्वंद्ध से गुजरना पड़ता है ।इस प्रकिया में मानसिक प्रतिमाओं का बनना और बिखर जाना और फिर संगठित होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और कलाकार के भावावेश और मासिक अवस्था पर निर्भर करता है ।
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